ग़ज़ल
होता है नूरानी मंज़र
मेरे घर जब तुम आते हो
दर्पण कुछ बोले तो कैसे
दर्पण से क्या कह जाते हो
मीठी बातों का विष तीखा
इनको अमृत बतलाते हो
फूलों से खिल जाते हो तुम
फूलों से ही मुरझाते हो
माँ के आँचल से बढ़कर क्या
माँ का आँचल ठुकराते हो
— बलजीत सिंह बेनाम