मौसम
मोहब्बत को याद करों
दिल फिर से जवां हो जाता
ख़्वाब हो पुराने मगर
आंखों में फिर चमक दे जाता
बसंत के आने से
मन गुनगुनाता
प्यार का पंछी भी गीत गाता
धड़कन ऐसी धड़कती की
डालियों से पत्ता टूट जाता
कहते वसंत ऋतु में ऐसे ही आता
आमों पर लगे मोर फूल सुहाते
ताड़ी के भी ऊँचें पेड़ शोर मचाते
सूने पहाड़ भी गीत गुंजाते
टेसू भी ये सब देख मुस्कुराते
मौसम भी बेमौसम यदि हो जाए
दिल प्यार के अल्फ़ाज भूल जाए
— संजय वर्मा ‘दृष्टी’