बेटी
कुदरत रो उपहार है बेटी ।
दो घर रो आधार है बेटी ।।
बेटा-बेटी ऐक ही जैस्या,
घर में सुख रो सार है बेटी ।
अब बेटियां भी पीछे कोनी,
राज-काज सरकार है बेटी ।
जमीं गगन सब ठौर-ठौर म्हे,
सात समंदर पार है बेटी ।
भले करम सू आवे घर म्हे,
मोतिया मुंगो हार है बेटी ।
सब रे मन री उड़न चिड़कली,
मन मीठी मनुहार है बेटी ।
बेटी रे पग सूं ही है जग ,
अमन हिये रो प्यार है बेटी ।
— मुकेश बोहरा ‘अमन’