कविता

स्त्रियाँ

जिन स्त्रियों को
कभी पूछा नही गया
जिन स्त्रियों ने
घर-परिवार
मान-मर्यादा की
आग में झोंक दिया
खुद को
जिन स्त्रियों ने खामोशी
से सह ली हर पीड़ा
हर ज़ुल्म
वो स्त्रियाँ समाज में पहचानी
गयीं अपने गुणों के लिए
और उन्हें कहा गया सुशील
और मर्यादित
जिन स्त्रियों में समाज
में परम्पराओं के नाम
पर हो रहे
अत्याचारों के खिलाफ
बगावत की
वो बत्तमीज, दबंग और बिगड़ैल
कहलाई

— कल्पना ‘खूबसूरत ख़याल’

कल्पना 'खूबसूरत ख़याल'

मैं पुरवा, उन्नाव (उत्तर प्रदेश ) से हूं। मैं ग्रेजुएशन कर रही हूं आगे चलके शिक्षक बनने की इच्छा है। लिखना मेरा शौक है।