गीतिका/ग़ज़ल

गज़ल – चाहता हूँ…

सुनो ,तुम्हें अपना बनाना चाहता हूँ।
रंग खुशियों के सजाना चाहता हूँ।
माँगी थी कभी जो दुआ तेरे लिए,
आज फिर सपने सजाना चाहता हूँ ।
आंखों में बसी है ,वही तेरी सूरत ,
 सीने में  तस्वीर छिपाना चाहता हूँ।
जमाने ने दिए थे आँख में आँसू जो ,
भूल ज़ख्म वो मुस्कुराना चाहता हूँ।
खाई थी कसम गलियों से न गुजरने की
उन्हीं राहों में गुनगुनाना चाहता हूँ।
खफ़ा होकर जो तुम यूँ  दूर जा बैठे हो,
आज तुमको फिर मनाना चाहता हूँ।
छोड़ा तुमने इस हाल में ,और चले गये ,
पाखी बन फिर चहकना चाहता हूँ।
— मनोरमा जैन पाखी 

मनोरमा जैन पाखी

मेहगाँव , भिंड (मध्य प्रदेश)