एतबार की नींव खोखली दरकते है रिश्ते।
बेगरज की बुनियाद पे ही बनते है रिश्ते ।
शीशे की मानिन्द ही नाजुक है रिश्तों के पैकर ,
कि टूटने के बाद फिर कहाँ जुडते है रिश्ते।
गैरों की दिल्लगी, अपनों की खताये भी भुला दो,
इन्हीं छोटी छोटी बातों से महकते है रिश्ते।
दिल और दिमाग की बांबी में ही कैद रखना ,
ये शक के झूठे अजगर निगलते है रिश्ते ।
मेरे जजबात भी महके,तेरे ख्वाब भी सजे,
इस मानिन्द हो मरासिम , कहते है रिश्ते।
तर्के तआल्लुक का इलजाम न देना किसी को,
अपने ही किये बनते है बिगडते है रिश्ते।
— ओमप्रकाश बिन्जवे “राजसागर”