कविता

पाँव अब उतने छोटे नही रहे

पाँव अब उतने छोटे नही रहे
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तुम्हें कागज़ की कश्तियों से
पार उतरना पसंद था
कभी उपहास करती थी मैं
तुम्हारी ये हल्की बातें सुन ..
शायद बचपना ही था मेरा
कि तुम तो पार उतर गये
हवाओं से रुख मिला
और मैंने ,,,?
एक उम्र गुजार दी यहाँ
लकडियाँ चुनते बीनते
जोड़-तोड़ -जीवन -कीलित करते ..
उस पार उतर पाने की
ख्वाहिश करते …..
टटोलती रहती हूँ अब
मुड़े-तुड़े पन्नों में लिपटा
तुम्हारा अपरिमित ज्ञान ..
जोड़ तो लिए हैं मैंने भी
कुछ एक कागज़ के टुकड़े
पर क्या कहूँ कि ..
पाँव अब उतने छोटे नही रहे
न ही ज़िन्दगी अब उतनी हलकी …..
प्रियंवदा अवस्थी

प्रियंवदा अवस्थी

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से साहित्य विषय में स्नातक, सामान्य गृहणी, निवास किदवई नगर कानपुर उत्तर प्रदेश ,पठन तथा लेखन में युवाकाल से ही रूचि , कई समाचार पत्र तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित , श्रृंगार रस रुचिकर विधा ,तुकांत अतुकांत काव्य, गीत ग़ज़ल लेख कहानी लिखना शौक है। जीवन दर्शन तथा प्रकृति प्रिय विषय । स्वयं का काव्य संग्रह रत्नाकर प्रकाशन बेदौली इलाहाबाद से 2014 में प्रकाशित ।