कविता

ज़िन्दगी

सच में ज़िन्दगी कुछ और नहीं
एक मैदान है जंग का हालातों के रंग का।
खूबसूरत सा किस्सा है सुख और दुःख का हिस्सा है
अनुभव बेहिसाब है! हालातों की क़िताब है।
ग़म और खुशियों का दौर है
समझ से परे जिंदगी कुछ और है!
तपती धुप सी कड़ी परेशानियाँ
अल्हड़पन की ख़ूबसूरत सी नादानियाँ
यूँ ही सिलसिला चलता रहता है जिंदगी का
कभी समेट लेती है ख़ुशियाँ अपनी बाहों में
कभी निर्झर निर्झर झरते हुए नैना
मचलते हुए जज्बातों को बयाँ करती ये मूक बैना।
समेट लेते हैं वो क़ायनात भी अपनी बाहों में।
हालातों से निपटने का हुनर होता है
जिनकी राहों में।।
कहीं किसी ने नफ़रत की आग़ जलाई है।
तो कहीं किसी की मुहब्बत मुस्कुराई है!
कुछ ख़ुशियाँ बांटने वाले भी फ़रिश्ता है।
जिनसे बस रूह का ही रिश्ता है।
सच में ज़िन्दगी कुछ और नहीं।
ये फ़लसफ़ा खुद ज़िन्दगी ने पढाई है।
— मणि बेन द्विवेदी

मणि बेन द्विवेदी

सम्पादक साहित्यिक पत्रिका ''नये पल्लव'' एक सफल गृहणी, अवध विश्व विद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर एवं संगीत विशारद, बिहार की मूल निवासी। एक गृहणी की जिम्मेदारियों से सफलता पूर्वक निबटने के बाद एक वर्ष पूर्व अपनी काब्य यात्रा शुरू की । अपने जीवन के एहसास और अनुभूतियों को कागज़ पर सरल शब्दों में उतारना एवं गीतों की रचना, अपने सरल और विनम्र मूल स्वभाव से प्रभावित। ई मेल- [email protected]