सीप के घर ठिकाना चाहती हूँ
सीप के घर ठिकाना चाहती हूँ
आज कुछ गुनगुना रहा है दिल
आज मैं गीत गाना चाहती हूँ।
धड़कने सुर सजा रही कुछ ऐसे
साज़ दिल का बजाना चाहती हूँ।।
महकते गेसुओं को झटककर
तुम्हें खुशबू उढाना चाहती हूँ ।
तुम चमक जाओ चाँद की तरह
तारे ऐसे सजाना चाहती हूँ।।
तार टूटे न साज़ ही रूठे
मेरे दिल की सुनाना चाहती हूँ।
बात कोई उठे न दर्द की शब भर
सुबह सी खिलखिलाना चाहती हूँ ।।
आब आंखों रहा और रूह प्यासी
एक समंदर समाना चाहती हूँ ।।
बूूंद मैै अब्र की ढल जाऊँ तपकर
सीप के घर ठिकाना चाहती हूँ ।।