कुंडलिया
“कुंडलिया”
चादर बर्फीली तनी, पसरा बर्फ दुवार
कैसे ओढ़े री तुझे, हड्डी चढ़ा बुखार।।
हड्डी चढ़ा बुखार, निखार कहाँ से लाऊँ
काँप रहे हैं होठ, गीत प्रिय कैसे गाऊँ।।
कह गौतम कविराय, हाय री ठंडी दादर
गर्म न होती रात, दिवस में भीगे चादर।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी