मुक्तक
“मुक्तक”
व्यंग ढंग का हो अगर, तो करता बहुमान।
कहने को यह बात है, पर करता पहचान।
भागे भागे क्यों फिरे, अपने घर से आप-
और दुहाई दे रहे, मान मुझे मेहमान।।
बनी बनाई रोटियाँ, खाता आया पाक।
अब क्या तोड़ेगा सखे, लकड़ी जल भइ खाक।
जाति-पाति के नाम पर, चला रहा है राज-
कहाँ अन्य को दे दिया, अपने जैसी धाक।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी