कविता
यकीनन
कारवां-ए-ज़िन्दगी
जब गुज़र गया होगा
तब हर तक़रीर को
उलट- पुलट के
पढ़ा गया होगा
कि बोल उठे होंगे
तब जज़्बात वह भी
जिनका इल्म हमें भी न रहा होगा
यकीनन
कारवां-के-ज़िन्दगी
जब गुज़र गया होगा
तब हर नादानी से भरी ज़िन्दगी को
संजीदगी से लिया होगा…
हर लफ्ज़ जो कह गए थे
हम ग़फ़लत में यूँ ही
मख़मली एहसास हो गया होगा
यकीनन
कारवां-के-ज़िन्दगी
जब गुज़र गया होगा…
तब दौड़ती-भागती सी
इस ज़िन्दगी का
हर लम्हा बेशकीमती ही लगा होगा
यकीनन
कारवां-ए-ज़िन्दगी
जब गुज़र गया होगा…
— ज्योति अग्निहोत्री