फागुन
पहाडों पर टेसू ने रंग बिखेरे फागुन में
हर कदम पर बज रहे ढोल फागुन में
ढोल की थाप पे थिरकते पैर फागुन में
महुआ लगे झुमने गीत सुनाये फागुन में
बिन पानी खिल जाते टेसू फागुन में
पानी संग मिल रंग लाते टेसू फागुन में
रंगों के खेल हो जाते शुरू फागुन में
दुश्मनी छोड़ दोस्ती के मेल होते फागुन में
शरमाते जाते है सब मोसम फागुन में
मांग ले जाते प्रेमी कुछ प्यार फागुन में
हर चहरे पर आ जाती खुशहाली फागुन में
भगोरिया के नृत्य लुभा जाते फागुन में
बांसुरी ,घुंघरू के संग गीत सुनती फागुन में
ताड़ों के पेड़ों से बन जाते रिश्ते फागुन में
शकर के हर-कंगन बन जाते मेहमां फागुन में
पहाड़ों की सचाई हमसे होती रूबरू फागुन में
— संजय वर्मा “दृष्टि “