दुर्मिल सवैया – फाग बयार
भँवरे कलियाँ तरु झूम उठें जब फाग बयार करे बतियाँ|
दिन रैन कहाँ फिर चैन पड़े कतरा- कतरा कटती रतियाँ|
कविता, वनिता, सविता, सरिता ढक के मुखड़ा छुपती फिरती|
जब रंग अबीर लिए कर में निकले किसना धड़के छतियाँ|
नव लाल गुलाल मले मितवा हँसती सखियाँ हँसती नगरी|
कजरा लहका गज़रा महका मुख लाल हुआ पिघली सगरी|
तन काँप उठा धड़का जियरा चुप देह रही चुप होंठ हिले|
पर बोल पड़ी अँखियाँ पगली छलकी झट प्रीत भरी गगरी|
— राजेश कुमारी राज