कविता

परिपूर्णता

परिपूर्णता

हां! हो तुम
हृदय में , जैसे
मृग के कुंडल में
स्थित कस्तूरी,
आभामंडल सा
व्याप्त है तुम्हारे
अस्तित्व का गंध,
जो जगाए रखता
है निरंतर एक
प्यास मृगतृष्णा सी,
हां मृगतृष्णा सी -….
एक अभिशप्त
तृष्णा जो जागृत
रखती है अपूर्णता
के एहसास को
मृत्युपर्यंत …..
हां ये अपूर्णता
ही तो परिपूर्ण
करती है जीवनचक्र,
नहीं होना मुक्त
इस एहसास से,
बस यूं ही कस्तूरी
सा बसे रहो
हृदय तल में,
जिसकी गंध से
अभिभूत एक
विचरण जो
जीवित रख सके
मृत्यु तक….

कविता सिंह

पति - श्री योगेश सिंह माता - श्रीमति कलावती सिंह पिता - श्री शैलेन्द्र सिंह जन्मतिथि - 2 जुलाई शिक्षा - एम. ए. हिंदी एवं राजनीति विज्ञान, बी. एड. व्यवसाय - डायरेक्टर ( समीक्षा कोचिंग) अभिरूचि - शिक्षण, लेखन एव समाज सेवा संयोजन - बनारसिया mail id : [email protected]