गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

आँख से बहती नदी है,
क्या अज़ब दीवानगी है।

चार दिन की दोस्ती है,
चार दिन की ज़िन्दगी है।

भूलना मुमकिन नहीं है,
याद भी जाती नहीं है।

ख़्वाब भी टूटे पड़े हैं,
आस भी गिरवी पड़ी है।

मैं बुरा हूँ मानता हूँ,
आपमें भी कुछ कमी है।

प्यार है तो सोचना क्या,
क्या गलत है क्या सही है।

आँख को तक़लीफ़ है क्यों,
चोट तो दिल पर लगी है।

वह गया है बाद उसके,
रह गयी नेकी-बदी है।

इश्क़ है इक खेल जिसमें,
एक नट है इक नटी है।

आपका है नाम इसमें,
यह ग़ज़ल मैंने कही है।

बदल पाया है नहीं कुछ,
आज भी ‘गुलशन’ वही है।

— अशोक “गुलशन”

डॉ. अशोक "गुलशन"

पिता- स्व0 बृज बहादुर पाण्डेय जन्म तिथि- 25-06-1963 शिक्षा- बी0ए0एम0एस0 , डिप्लोमा इन नेचुरोपैथी डिप्लोमा इन हर्बल मेडिसिन सम्प्रति- प्रभारी चिकित्सा अधिकारी राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय नगर बहराइच (उत्तर प्रदेश) सम्पर्क- उत्तरी क़ानूनगोपुरा बहराइच (उ0प्र0) पिन-271801