गीत/नवगीत

कैसे कह दूँ …

जाति – धर्म का दंश पुराना झेल रहा यह हिन्दुस्तान ||
कैसे कह दूँ कि सर्वधर्म का मेल रहा यह हिन्दुस्तान ||
जाति – पाँति और धर्म भेद
सब राजनीति की चालें हैं |
छूआछूत और ऊँच -नीच
सब उन्नति द्वार के ताले हैं |
ऊँची पगड़ी वाले बगुले
मानवता को खाने वाले हैं।
ये हिंसक हैं ,नरभक्षी हैं
ये सचमुच मन के काले हैं।
फंसा हुआ है “मनुज” इन्हीं में
ये मकड़ी वाले जाले हैं।
सदियों से पीसा है जिसने ,मेरे प्यारे भारत देश को
उसी पुराने कोल्हू में स्वयं को पेल रहा यह हिन्दुस्तान || कैसे कह दूँ …

 

यह दंश पुराना जहर भरा
सहते मीरा और कबीर गए |
यही निकृष्टतम गरल पान कर
संत रविदास फकीर गए ||
जिन जंजीरों को सुलझाने में
शहीद भगत सिंह से वीर गए |
इस भारत माँ की मिट्टी में
दयानन्द , राजाराम गंभीर गए ….
इन जात- पाँत के बैरी से
लड़कर गाँधी जैसे धीर गए |
दलित , वैश्य , सवर्ण , शूद्र का बोझा ढोते पीर रहे ,
वही पुराना बोझा अब तक ठेल रहा यह हिन्दुस्तान || कैसे कह दूँ …

 

कृष्ण तो बैकुण्ठ गए
पर कंस यहीं पर छोड़ गए |
मानवता के हत्यारों का
सब वंश यहीं पर छोड़ गए ||
पढ़े लिखे विद्वान ये पाण्ड़व
बेबस और लाचार खड़े |
संविधान के नियम सभी
बनकर बेबस द्रोण खड़े |
मानवता के चीरहरण पर
कोर्ट कचहरी मौन पड़े |
सजा हुआ है चौपड़ का खेला धूर्त शकुनी बैठें हैं
वही घिनौने पासे लेकर खेल रहा यह हिन्दुस्तान ||
कैसे कह दूँ कि सर्वधर्म का मेल रहा यह हिन्दुस्तान ||

रचनाकार :- मनोज कुमार  “मनुज”
जयपुर राजस्थान

मनु

शिक्षक , साहित्यकार जी आर ग्लोबल अकादमी जयपुर , राजस्थान - 302012 मो० 8058936129