प्रेम क्या है
प्रेम कोई प्रर्दशन नहीं है,
प्रेम झूठी उपासना नहीं है,
प्रेम अतृप्त वासना नहीं है,
प्रेम कोई दिखावा नहीं है।
प्रेम श्रृंगार भी नहीं है,
प्रेम ना ही सत्कार है,
प्रेम कोई परीक्षा भी नहीं,
प्रेम कोई समझौता भी नहीं।
प्रेम कोई झूठे स्वप्न नहीं दिखाता,
प्रेम मोह जाल में भी नहीं फंसाता,
प्रेम में धोखा नहीं दिया जाता है,
प्रेम सम्बन्धों में वैर नहीं करता।
तो फिर प्रेम क्या है,
प्रेम मीरा के गीत है,
प्रेम राधा की प्रीत है
प्रेम असत्य पर सत्य की जीत है।
प्रेम शबरी के बेर है,
प्रेम अहिल्या की प्रतिक्षा है,
प्रेम द्रोपदी का कृष्ण पर विश्वास है,
प्रेम देश के प्रति मर मिटने का भाव है।
प्रेम गीता का ज्ञान है,
प्रेम तुलसी का राम के प्रति सम्मान है,
प्रेम हीर रांझा की पहचान है,
प्रेम निस्वार्थ किया गया हर काम है।
— कालिका प्रसाद सेमवाल