किस पर गर्व करूँ
घर का चिराग जब घर को जलाये क्या उस पर गर्व करूँ
घर का भेदी ही जब लंका ढ़हाए क्या उस पर गर्व करूँ।
देश बांटने वाले को अपना बताये क्या उस पर गर्व करूँ
जो कौमी एकता का नारा न लगाए क्या उस पर गर्व करूँ।
जो पड़ोसी दंगा,झड़प पर तमाशा देखे उस पर गर्व करूँ
जो सियासती कुर्सी की रोटी सेंके क्या उस पर गर्व करूँ।
छोड़ अमन की बातें,आग लगाए क्या उस पर गर्व करूँ
जो नफरत से ही बाज ना आए क्या उस पर गर्व करूँ।
शेर बिठाकर सत्ता में हम इतराए क्या उस पर गर्व करूँ।
जलता देश देख भी चुप रह जाए क्या उस पर गर्व करूँ।।
— आशीष तिवारी निर्मल