व्यंग्य : मेरे होते हुये तू दूसरा मुर्गा न फंसा।
इन दिनों शायर प्यारेलाल बड़े उदास से रहते हैं।मायूसी से भरे दिन एवं खोयी-खोयी रातें जैसे-तैसे कट रहीं हैं।लगातार आ रही नयी फिल्मों के दर्द भरे गीत उन्हें रोने पर विवश कर रहे हैं।दरसल ये सब शायर प्यारेलाल की जिंदगी में पहली बार हो रहा है।जिस कमनीय चतुर कन्या के ‘मोहब्बत नामक भ्रमजाल’ में शायर प्यारेलाल फंसे थे उस चतुर कन्या की रजिस्ट्री पहले से ही किसी बेवड़े ने खुद के नाम कर रखी थी।ये उस चतुर कन्या की चतुराई ही थी कि किसी के नाम पर रजिस्टर्ड होते हुए भी वो लगभग प्यारेलाल जैसे एक दर्जन मजनुओं पर जीती मरती थी।सच्ची मोहब्बत करने का दावा रोज रात दो बजे तक वाटस्प और मैसेंजर पर करती थी।प्यारेलाल एक सहज,सरल और मशहूर शायर थे लिखते बाकमाल थे।सम्मान पूर्वक जिंदगी जी रहे थे।
बात सन् 2017 की है जब मुशायरे में जाते समय उनका मोबाइल बज उठा।पहले तो आवाज सुनकर यूं लगा जैसे कोई मर्द बोल रहा है।लेकिन नेटवर्क एरिया में आने के बाद और फोनकर्ता के नाम बताने के बाद प्यारेलाल को यकीन हो गया कि सामने से कोई कन्यानुमा ही है।मर्द जैसी आवाज वाली उस चतुर कन्या ने फोन पर हुई चंद मिनट की बातों से प्यारेलाल को एहसास करा दिया गया कि वो प्यारेलाल की जबरा फैन है यूट्यूब पर प्यारेलाल की शायरी सुनती है।फेसबुक प्रोफाइल को जूम करके देखा करती है।
इतनी बात सुनते ही प्यारेलाल को यूँ लगा जैसे ईश्वर की अटकी हुई कृपा आनी शुरू हो गई है।मारे खुशी के उस रात प्यारेलाल ने मुशायरे में मोहब्बत की वो शायरी भी पढ़ी जो उनने कभी लिखी भी ना थी।
प्यारेलाल उसके साथ पींगे बढ़ाने को आतुर हो उठे बात बढ़ती ही गई वाटस्प चैट,विडियो काल,पर देर तक बातें भी होने लगी।मौके की नज़ाकत को भांपते हुए चतुर कन्या प्यारेलाल से मोबाइल में बैलेंस डलवाने के साथ ही टीवी आदि का रिचार्ज भी करा देने का आग्रह करने लगी।अत्याधिक पैसे की जरूरत पड़ने पर कन्या प्यारेलाल से बैंक खाते में आरटीजीएस भी करवा लेती।मुशायरे में आते-जाते समय नजदीकी रेलवे स्टेशन पर प्यारेलाल से मिलने कन्या अपना मुंह ढांक कर ही आया करती थी जिससे उस कन्या के दर्जनों छिछोरे टाइप के प्रेमी भी उसे नहीं पहचान पाते थे कभी कभार तो प्यारेलाल खुद भी नहीं पहचान पाते थे।चतुर कन्या के आग्रह पर ही प्यारेलाल उसको शायरी और कविता लिखकर देने लगे उसके नाम से अखबार में प्रकाशित कराने लगे।अखबार में छपी कविता और फोटो को उसने फेसबुक प्रोफाइल बनाकर खुद के आशिकों की संख्या में इज़ाफा कर लिया।अब उसके पास मोबाइल,टीवी रिचार्ज करा देने वाले आशिकों की भरमार थी। कुछ तो इतने खतरनाक आशिक मिले की निजी तस्वीर मिलते ही उसे बहुत से ग्रुपों में एडमिन बना दिए।और शायद फेसबुक ग्रुप में एडमिन बनना ही उस चतुर कन्या के जीवन का अंतिम लक्ष्य था जिसे वो प्राप्त करने के बाद से प्यारेलाल से दूरी बनाने लगी।प्यारेलाल नवोदित आशिक की तरह अधीर हो उठे।विरह वेदना में सुलगने लगे।कभी कभार तो दुनिया को अलविदा कहने के भाव भी प्यारेलाल के मन में उठने लगे।किसी के समझाने पे अब प्यारेलाल मोबाइल युग एवं आधुनिक मोहब्बत को कोसते हुये
अपनी पुरानी जिंदगी में धीरे-धीरे लौट रहे हैं और सबसे सोच समझकर और दिखावे की मोहब्बत के झांसे में ना आने की सलाह दे रहे हैं।अपनी मोहब्बत को याद करते हुए प्यारेलाल गीत गुनगुना रहे थे-
मुझको टरका दिया औरों से बहाने से मिली,
एक मेरे सिवा सारे जमाने से मिली,
तू फलाने से फलाने से फलाने से मिली
काश मुझको भी चखा दे मोहब्बत का मज़ा।
ऐ मेरी जान वफ़ा,जान वफ़ा,जान वफ़ा,
मेरे होते हुये तू दूसरा मुर्गा ना फंसा।
— आशीष तिवारी निर्मल