हरिगीतिका छन्द वंदना
विनती सुनो प्रभु पातकी की ,भय क्षरण मम कीजिये ।
निष्काम मेरी प्रार्थना प्रभु ,रख पगों में लीजिये ।
तुलसी सजी हो बीच तन पर ,अंत हो जब श्वास का ।
जल गंग का मुख में डले तब ,प्रश्न हो जब प्यास का ।
मुझको पुकारें आप जिस क्षण , तिथि रहे एकादशी।
पाऊँ जनम जग में नहीं फिर ,है अरज इक नाथ जी ।
प्रभु आपके दर प्राण निकलें ,करम इतना कीजिये ।
निष्काम मेरी प्रार्थना प्रभु ,रख पगों में लीजिये ।
— रीना गोयल