पीड़ा पीने का प्रयास
ये खामोशी निरंतर बढ़ती हुई,
पीड़ा को पीने का प्रयास है।
मेरी हँसी में दर्द की मिलावट है,
ये सच है या लोगों का कयास है।
मेरा दिन हँसता है रात हँसती है,
चेहरा भी हँसता है आँखें हँसती है।
फिर मेरे ही भीतर छुपी मेरी परछाई,
क्यूँ हर पल हर घड़ी हरदम उदास है।
हंसकर पीडाओं पर विजय पा ली,
या मैने हंसकर अपनी पीड़ा छुपा ली।
फर्क क्या पड़ता है अब इस सबसे,
जैसा भी है ये खूबसूरत प्रयास है।
लोगों की नजरें बड़ी पारखी है उन्हें,
खबर है की पीड़ा सुख की सारथी है।
सब भटक रहे मृगतृष्णा की प्यास में,
पीड़ा के बादल से सुख के बारिश की आस है।
— आरती त्रिपाठी