मुक्तक/दोहा

मासूम दिल

कौन कहता है मर्द को दर्द नहीं होता ?
दर्द भी होता है और
सतरंगी सपनों का अहसास भी होता है
शर्मोहया की लाली भी झलकती है
और प्यार का सागर भी उमड़ता है
गम की बदली कभी घुमड़ती है
तो कभी खुशियों से दिल उछलता है
बैर , प्रीति , योग , वियोग
उसके हिस्से में भी आते हैं
क्योंकि एक मासूम सा दिल
उसके सीने में भी धड़कता है
अपने ही हाथों गला
    घोंटता है अरमानों का
भावनाओं का ज्वार
      जब भी मचलता है
उसका भी जी करता है
           कि जार जार रोऊँ
जिम्मेदारियों के अहसास से
          मगर हँसता रहता है
हँसता है मुखड़ा पर
दिल उसका भी रोता है
हाँ , उसके सीने में भी
एक मासूम सा दिल होता है !

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।