रिश्तों की नींव
क्यों हावी हो जाता है हमारे रिश्तों पर
झूठे अहंकार का आवरण?
बेवज़ह की ग़लत फ़हमियां,
जो तार तार कर जाते हैं
हमारे रिश्तों के अस्तित्व को
एक निराधार अहम्
जो रिश्तों के नाज़ुक धागों में डाल जाते हैं
स्वार्थ की गाँठ
हमारी चंद पल की ज़िन्दगी
अहंकार की जाल में जकड़ कर
दम घोंट देती हैं
और कोमल रिश्ते फंस जाते हैं
स्वार्थ की दलदल में
एक कोख़ से जन्में ख़ून के रिश्ते
जो नश्वर दौलत के लिए दूरियाँ बना लेते हैं
वो अपने जो लोभ मोह में फंस कर सर्वथा
संवेदनहीन हो जाते हैं।
आज संवेदनहीन होती इंसानियत
स्वार्थ और लालच में पलते रिश्ते
रिश्तों की बलि चढ़ा रहे हैं।
आज के परिवेश में
जहाँ रिश्तों के मूल्य और अर्थ बदल रहे हैं
स्वार्थ की धूरी पर टिके
एक दूसरे के लिए दिलों में पलते हुए नफ़रत
दौलत के छक्का चौंध में भागती दौड़ती ज़िंदगियां
निज कर्तव्यों से भटके हुए रिश्ते
अपनी ज़िम्मेदारियों से मुँह मोड़
स्वछंद रहने की अभिलाषा लिए
पंगु होती संवेदना ,सिसकती हुई वेदना
अपनों के लिए मर चुकी है मन की भावना
लोलुप इंसानियत मान मर्यादा को
स्वार्थ की समिधा में आहूत करने वाले
सच कहाँ जा रही हमारी सभ्यता
हमारा संस्कार ???
— मणि बेन द्विवेदी