ग़ज़ल
अपने हाथों की लकीरों में पढ़ाकर उसको
गुनगुनाये वो अगर सिर्फ सुनाकर उसको
गीत उर्दू में कहे तू कि गजल हिन्दी में
तुझको पढ़ना है तो पढ़ किन्तु दिखाकर उसको
नाम के पीछे न पड़ काम भी कुछ करके दिखा
क्या करेगा तू अभी घर में बुलाकर उसको
माँ तो बस माँ है वो हिन्दी है न उर्दू प्यारे
माँ के बारे में जो कहना तो बताकर उसको
गीत कहना था तुझे फिर ये गजल क्यूँ कह दी
खैर अब ‘शान्त’ सुना शीश झुकाकर उसको
— देवकी नन्दन ‘शान्त’