धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

होली के रंगों में समाहित है स्नेह की मिठास

रंगों का त्योहार और वह भी शेखावाटी अंचल के साथ तो बड़े बड़े भी उत्साह व उमंग से सरोबार हो जाते है। होली के रंग-बिरंगे रंगों में प्यार ,स्नेह की आस इस दिन को और भी आनंदमय कर देती है। जाति पाति, अमीर- गरीब के भेदभाव से ऊपर उठकर, आपसी भाईचारे के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। होली के त्यौहार पर आपसी  मन मुटाव भूलकर एक दूसरे को गले लगा कर प्यार से गुलाल, अबीर लगाते है ।
*बसन्त ऋतु के आगमन के साथ शुरुआत**
बसंत पंचमी के दिन से ही तैयारियां शुरू होने लगती है फागुन मास में गांव और कस्बों में युवकों की टोलियां देर रात तक गली मोहल्ला, चौपाल में ढप  बजाते हैं, धमाल गाते-नाचते  मस्ती करते है। बांसुरी की मधुर धुन सुनकर हर कोई थिरकने लगता है। युवक रंग-बिरंगी वेशभूषा पहनकर स्वांग रचते है। कस्बो में भी गली मोहल्लों में ही नही मुख्य बाजार,स्टैंड  पर  भी श्याम होने के बाद युवक समूह के रूप में धमाल
,होली के गीत गाते,नाचते, मस्ती  करते है।शेखावाटी  में लोक संस्कृति की अनुपम छटा देखने को होती है।
 धुलण्डी के दिन सभी अपने से बड़ो को गुलाल लगाकर प्यार से गले मिलते है।इस त्योहार पर कोई अमीर गरीब,जाती पति बीच मे नही आती है।बस होली के  रंगों  में प्यार,स्नेह वअपनेपन
की मिठास समाहित कर त्योहार का भरपूर आनंद लेते है।इस त्योहार पर काफी दिनों से  चल रहे मनमुटाव भी भुलाकर एक दूसरे को गले लगाते है।
शेखावाटी के गींदड़,चंग नृत्य की पूरे देश मे अपनी विशिष्ट  पहचान रखते है ।
*प्रवासियों को रहता है इंतजार*
होली के त्योहार का प्रवासी राजस्थानियों को बहुत इंतजार रहता है। बात शेखावाटी की करें तो उनके लिए तो यह त्योहार बेहद खास होता है।
शेखावाटी के प्रवासी बंधु सूरत, मुंबई, हैदराबाद,
आसाम,कोलकत्ता,दिल्ली,
बेंगलुरु,मध्यप्रदेश,उत्तरप्रदेश,गुजरात, सहित अनेक प्रदेशों व विदेश में रहने वाले प्रवासी बंधु  विशेषकर होली के उत्सव पर शामिल होने  के लिए आते है। बाहर रहने वाले प्रवासी बंधु दो तीन दिन पूर्व से ही होली का कार्यक्रम विशेष रूप से  बनाते हैं ।
 भारत मे शेखावाटी का गींदड़ व चंग नृत्य की अपनी विशिष्ट है ।प्रवासी बंधु इस गींदड़,चंग नृत्य में शामिल हो कर आनंद लेते है।
*शेखावाटी में भी है एक वृन्दावन*
वृन्दावन का नाम सुनते ही सभी का ध्यान उत्तरप्रदेश में मथुरा के पास स्थित भगवान श्री कृष्ण की नगरी वृन्दावन
की तरफ ध्यान आकर्षित होता है लेकिन इसके अलावा
 शेखावाटी में झुन्झुनू जिले के भड़ोन्दा ग्राम में भी एक वृन्दावन है।यहां भी भगवान श्रीकृष्ण के मनमोहक स्वरूप बिहारी जी रूप में है।यहां पर भी दो दिवसीय कार्यक्रम होते है,प्रवासी बंधु बाहर से होली उत्सव में शामिल होकर त्योहार का पूरा आनंद लेते है।
*रिश्तों में प्रेम व आत्मीयता का संचार **
होली का त्योहार रिश्तों में प्यार और आत्मीयता का संचार करता है। मानवीय रिश्तों में होली के रंग जो देखने को मिलते थे जैसे  देवर -भाभी ,जीजा- साली की होली, वो हंसी- ठिठोली, मस्ती मानवीय रिस्तो की अनुपम मिशाल है।
यद्दपि बदलते परिवेश का प्रभाव वर्तमान में रिश्तों पर भी पड़ रहा है।
  आज रिश्तो में प्यार,स्नेह, अपनापन जो पहले देखने को मिलता उसमे गिरावट हुवी है।फिर भी राजस्थान का शेखावाटी क्षेत्र में अभी भी रिश्तों की कद्र व मांन सम्मान जीवट है।
**अब सिर्फ रस्म अदायगी*
कभी शेखावाटी के लोक गीतों, लोक उत्सव,त्यौहार, पर्व को मनाए जाने की परंपरा  की प्रदेश में ही नही देश मे विशिष्ट पहचान थी। वह अब धीरे-धीरे बदलते आधुनिक परिवेश में परंपरा के नाम पर अब केवल रस्म अदायगी रह गई है। इस प्रतिस्पर्द्धा व भाग दौड़  की जिंदगी में इन लोक परंपराओं को सहेजने का किसी को समय ही नहीं है। पहले जहां गली, मोहल्ला बाजारों में होली की धमाल, ढप की  ताल बसंत पंचमी के दिन से ही शुरू हो जाते थी।  युवकों की टोली  गाँव,कस्बो में श्याम से देर रात तक धमाल गाते नाचते थे।आज होली के 3-4 दिन पहले गिनते के युवक परंपरा के नाम पर गाते देखे जाते है। अब तो केवल बाहर से कोई गींदड़,चंग नृत्य करने व लोक गायकारो को  बुलाकर परम्परा की राह पर कस्बे में फाग उत्सव मनाने तक सिमट कर रह गया है।शेखावाटी की वो लोक परंपराएं, लोकगीत जो पहचान थे वो  धीरे-धीरे लुप्त होते जा रही हैं, जो कभी पूरे देश में शेखावाटी की लोक परंपरा लोकगीतों एवं लोक उत्सव के लिए पहचानी जाती थी।
अब जरूरत परम्पराओं के प्रति युवा पीढ़ी को प्रेरित कर जनजागरण की है ताकि फिर हमारी परम्पराओं से संस्कृति अपना विराट वैभव हासिल कर सके।
— डॉ. शम्भू पंवार

शम्भू पंवार

ब्यूरो चीफ ट्रू मीडिया, दिल्ली चिड़ावा, 8058444460 [email protected]