जिंदगी खेल नहीं
जिंदगी जीने के लिए
संगत का असर देखा
व्यसनों का उन्माद देखा
जो उनसे दूर रहा
जिंदगी को ज्यादा जिया
जिंदगी कोई खेल नहीं
जिसे दुर्व्यवसनों की
आग में झोंक दिया जाए
परिवार का साथ
जो निर्भर है खुद पर
जो सुखों ख़ुशियों के
सपने रोज निहारता
और पाता
उन सपनों को टूटते देखना
अच्छी बात नहीं
जिंदगी कोई खेल नहीं
उसे ऐसी दिशा में
क्यों ले जाया जाए
जहाँ जीवन अंधकार बने।
— संजय वर्मा ‘दॄष्टि ‘