कविता

तेरे दर पर

गोविन्द के दरबार में मैं तो क्या हर कोई खोता सुध बुध है अपनी , आज उपजी कुछ भावना

एक तेरा नाम ही,
बस गया हैं रगों में,
जल्द मिलना चाहूँ ,
तेरे से मैं …..

आना चाहूँ तेरे धाम,
बेचैन हो रही हूँ मैं,
प्राण निकले तन से ,
तुम रहना सामने मेरे,

तुम ही हो मेरे दिलबर,
एक तेरे आसरे ही,
चल रही है सांस मेरी
क्या कहूँ दिल की तुझसे,

ओ !!कान्हा तुम हो सब कुछ मेरे
बस तेरी ही बनना चाहूँ ,
कोई मीरा कहे या कहे बावरी ,
बस तेरी ही होना है मुझे ।

जब जब आती हूँ,
तेरे दर पर शीश झुकाने,
खुद को भूल जाती हूँ
तुझमे खो जाती हूँ,

जल्द से निकले प्राण मेरे,
तुझमे ही समाउँ मैं ,
यही तमन्ना है मेरी ।।

*डॉ. सारिका रावल औदिच्य

पिता का नाम ---- विनोद कुमार रावल जन्म स्थान --- उदयपुर राजस्थान शिक्षा----- 1 M. A. समाजशास्त्र 2 मास्टर डिप्लोमा कोर्स आर्किटेक्चर और इंटेरीर डिजाइन। 3 डिप्लोमा वास्तु शास्त्र 4 वाचस्पति वास्तु शास्त्र में चल रही है। 5 लेखन मेरा शोकियाँ है कभी लिखती हूँ कभी नहीं । बहुत सी पत्रिका, पेपर , किताब में कहानी कविता को जगह मिल गई है ।