तेरे दर पर
गोविन्द के दरबार में मैं तो क्या हर कोई खोता सुध बुध है अपनी , आज उपजी कुछ भावना
एक तेरा नाम ही,
बस गया हैं रगों में,
जल्द मिलना चाहूँ ,
तेरे से मैं …..
आना चाहूँ तेरे धाम,
बेचैन हो रही हूँ मैं,
प्राण निकले तन से ,
तुम रहना सामने मेरे,
तुम ही हो मेरे दिलबर,
एक तेरे आसरे ही,
चल रही है सांस मेरी
क्या कहूँ दिल की तुझसे,
ओ !!कान्हा तुम हो सब कुछ मेरे
बस तेरी ही बनना चाहूँ ,
कोई मीरा कहे या कहे बावरी ,
बस तेरी ही होना है मुझे ।
जब जब आती हूँ,
तेरे दर पर शीश झुकाने,
खुद को भूल जाती हूँ
तुझमे खो जाती हूँ,
जल्द से निकले प्राण मेरे,
तुझमे ही समाउँ मैं ,
यही तमन्ना है मेरी ।।