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“दिल्ली हिंसा और हमारी संस्कृति” विषय पर संगोष्ठी का आयोजन

लखनऊ। राष्ट्रधर्म मासिक पत्रिका के प्रांगण में दिल्ली हिंसा और हमारी संस्कृति पर संगोष्ठी का आयोज किया गया। संगोष्ठी को संबोधित करते हुए विचारक बाबूलाल शर्मा ने कहा कि दिल्ली की हिंसा राष्ट्र व संस्कृति पर सीधा हमला है। अब लोकतांत्रिक स्वरूप में नये प्रकार से हमला हो रहा है। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी के जीवनकाल मंें भी देश विभाजन समय हिंसा हुई थी हिंदुओं पर हमला हुआ था। दिल्ली के दंगों पर एक से बढ़कर एक खतरनाक वीडियो जारी हो रहे हैं। गांधी जी कहते थे कि कमजोर बने रहने का मतलब है गंुडों को बढ़ावा देना। यह एक प्रकार से खुफिया नाकामी रही है कि वह यह पता हीं कर पायी कि इतनी तादाद में पत्थर कहां से आ गये? वारिस पठान के बयान का उल्लेख करते हुए कहा कि जब 15 करोड़ सौ करोड़ पर भारी जैसे बयान दिये जा रहे हैं। उन्होंने हर्ष मंदर के बयानों का भी उल्लेख किया।
श्री शर्मा ने कहा कि यह सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर सीधा हमला है। सीएए का विरोध क्यों हो रहा है, इसके पीछे काफी गहराई है। विरोध की आड़ में ये लोग रोहिंग्या व बांग्लादेशी मुसलमानों को शरणार्थी मानकर नागरिकता देने की मांग कर रहे हैं। जो समाज राष्ट्र से समरस नहीं होना चाहते वे शत्रु हैं या मित्र? यह हिंसा परम्परागत आक्रमणों का एक भाग है। इन आक्रमणों से कैसे निपटना होगा यह सोचना होगा?
शर्मा जी ने कहा कि जब तक हम अपनी वैचारिक पृष्ठभूमि ठीक नहीं करेंगे तब तक हमले होते रहेंगे। हिंदू धर्म की भावनाओं का सम्मान तभी होगा जब दूसरे धर्म के लोग भी उसी प्रकार सोचें। अन्य धर्मो की प्रवृत्ति विस्तार की प्रवृत्ति है जिसमें ईसाई धर्म का विस्तार प्रलोभन के माध्यम से होता है, जबकि इस्लाम हिंसात्मक व आक्रामकता के द्वारा जनसंख्या वृद्धि करता है। अपने धर्म व संस्कृति की रक्षा के लिए अब हमें भी प्रतिकार की नीति अपनानी होगी? जब तक यह नीति नहीं अपनायी जायेगी तब तक हमले होते रहेंगे, दिल्ली में हिंसा भ्रम व असुरक्षा के भाव नीति के चलते हिंसा फैली। नागरिकता कानून पर लोगों को भ्रमपूर्ण स्थिति को दूर करना चाहिए।
संगोष्ठी को संबोधित करते हुए पत्रकार आलोक अवस्थी ने कहा कि जम्मू कश्मीर में जब 1990 में हिंदू मारकर भगाये गये उस समय हम लोग शांत रहे और पूरा देश तमाशा देखता रहा। जिसके कारण उन लोगों की हिम्मत काफी बढ़ गयी है। उनकी अराजकता के लिए हम भी जिम्मेदार हैं। आयुर्वेदाचार्य यज्ञदत्त शर्मा ने कहा कि दिल्ली की लड़ाई क्या लखनऊ से चेन्नई तक समानता है। यह लड़ाई हिंदू-मुस्लिम न होकर सांस्कृतिक लड़ाई है और इसका आधार 1920 में खिलाफत आंदोलन जैसी लड़ाई है। चीन में 10 लाख मुसलमान बंद हैं, वहां पर क्यों चुप हो जाते हेैं। उन्होंने कहा जब-जब धर्म की हानि होती है तब-तब कृष्ण पैदा होते हैं।
राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के कुंअर आजम खां ने कहा कि सांप्रदायिकता शब्द का स्पष्टीकरण होना चाहिए। यह प्रायोजित हिंसा है और दिल्ली सरकार तथा खुफिया एजेंसियों की नाकामी भी है। जब तक हम सभी अपनी गलतियों को नहीं मानेंगे, तब तक यह हिंसा होती रहेगी। दिल्ली की हिंसा अमेरिकी राष्ट्रपति के आगमन के समय एक बहुत बड़ी साजिश थी। ताकि वे कहें कि भारत में कानून व्यवस्था बहुत खराब है ओैर वह यात्रा रद्द कर वापस चले जायें। उन्होंने कहा कि दंगाइयों से बात नहीं की जाती, अपितु राक्षसों को मारा जाता है। भारत की संस्कृति विदेशों में भी थी और विदेशी चैनलों में भारत विरोधी एकतरफा रिपोर्टिंग हो रही हैं। उन्होंने कहा- हम पहले अपने यहां पनप रहे आतंकवाद को रोकें। श्री जयप्रकाश ने कहा कि दिल्ली का दंगा बहुत ही दुःखद, चिंताजनक व चुनौतियों वाला है। सांप्रदायिकता का अंतिम परिणाम हिंसा होती है। मुसलमानों के मन में एक प्रकार का फोबिया भरा गया, उनको डराया और भड़काया गया। उन्होंने कहा कि 1947 में ही सभी नागरिकों को नागरिकता प्रमाणपत्र दे देना चाहिए था। 1947 में झूठ के आधार पर देश का विभाजन कराया गया ओैर बहुत सी बातें छुपायी गयीं। उस समय की जो महिलाएं यहां पर रह गयी हैं, वही आंदोलन का नेतृत्व कर रही हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह नागरिकता कानून अखंड भारत की कल्पना को खोलने वाला काम है और दिल्ली की हिंसा अमेरिकी राष्ट्रपति की यात्रा को प्रभावित करने की बड़ी साजिश थी।
राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के अखिल भारतीय मंत्री जैदी साहब ने कहा कि हमारी संस्कृति 2014 के बाद मजबूत हुई है। सरकार के बहुत से कार्यक्रम आये और लोकप्रिय हुए हैं। सरकार ने अनुच्छेद-370 हटाया, तीन तलाक हटाया और राम मंदिर का आंदोलन हल हो गया। लेकिन उसके बाद सीएए का मामला आया लेकिन यह एक ऐसा कानून है जिससे मुसलमानों को कोई नुकसान नहीं होने जा रहा। एनआरसी से उन लोगों को बल मिला जो लोग 70 साल से मुसलमानों को डरा रहे थे। ऐसी ताकतों को अवसर मिल गया। कांग्रेस ने ही मुसलमानों को बरगलाया है।
संगोष्ठी को संबोधित करते हुए राष्ट्रधर्म पत्रिका के प्रभारी निदेशक सर्वेश चंद्र द्विवेदी ने कहा कि दिल्ली की हिंसा पूरी तरह से प्रायोजित हिंसा है और यह दिल्ली सरकार तथा खुफिया एजेंसियों की नाकामी है। सरकार को पहले यह साफ करना चाहिए था कि हिंसा को संरक्षण देने वाले सभी विरोधी दल हैं तथा जिनका केंद्र पाकिस्तान में है। यह हिंसा उस समय आयोजित की गयी जिस समय पाकिस्तान ब्लैक लिस्ट होने वाला था। लेकिन इस हिंसा के कारण वह ब्लैक लिस्ट होने से वह बच गया। यह बहुत ही शर्मनाक है कि 70 साल हो गये लेकिन हम अपना नागरिक रजिस्टर नहीं बना पाये। सीएए का विरोध, शाहीन बाग और दिल्ली की हिंसा यह सारा सुनियोजित षड़यंत्र कांग्रेस का है। सोशल मीडिया के माध्यम से सबसे अधिक कम्युनिस्टों ने भड़काया। कम्युनिस्ट इस्लाम का विरोधी है, लेकिन आतंक का नहीं। उन्होंने कहा कि दिल्ली हिंसा के लिए दिल्ली सरकार व वहां के उपराज्यपाल पूरी तरह से फेल हैं। उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना चाहिए। केरल के राज्यपाल ने अपने संवैधानिक दायित्वों का निर्वाहन करते हुए सरकार के विरोध के बावजूद लोगों को सीएए के बारे में समझाने का पूरा प्रयास किया। दिल्ली प्रदेश भाजपा भी चुनाव जीतने व लडऩे में नाकाम रही। दिल्ली सरकार ने पूरी तरह राजनैतिक तुष्टीकरण किया। जिस दिन यूपी सरकार का फरमान पूरी तरह से देशभर में लागू हो जायेगा, उस समय हिंसा समाप्त हो जायेगी। दिल्ली हिसा के लिए वह जज भी जिम्मेदार हैं, जो नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में दायर याचिकाओं की जल्द सुनवाई से इंकार कर रहे हैं।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए पूर्व महापौर दाऊजी गुप्त ने कहा कि हमारी संस्कृति पूरे विश्व में फैली हुई थी और जिस पर समय समय पर आक्रमण होते रहे। विदेशों में आज भी भारतीय संस्कृति का साम्राज्य देखने को मिलता है। शक, हूण, कुषाण पठान आदि आक्रमणकारियों ने हमारी संस्कृति को नष्ट किया। मंगोलों ने भी काफी विनाश किया। हिंदू धर्म में अहिंसा परमो धर्म का भाव माना गया है। हम अपनी तरह से किसी पर हमला नहीं करेंगे लेकिन अगर हम पर हमला किया जायेगा तो उसका प्रतिकार अवश्य किया जायेगा। अहिंसा का मतलब कायरता नहीं होता। दिल्ली हिंसा पर कहां चूक हुई इस पर आत्मचिंतन होना चाहिए ताकि उसकी पुनरावृत्ति न हो। अंत में दिल्ली हिंसा में शहीद हुए पुलिस के जवानों व आम नागरिकों को दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि अर्पित की गयी।