गीतिका/ग़ज़ल

अपने ही हाथों छले जा रहे हैं।

अपने ही हाथों छले जा रहे हैं।
जाने कहाँ हम चले जा रहे हैं।।

टूटी सदा ख्वाहिशें ही हमारी,
आँखों में सपने पले जा रहे हैं।

अब तो नहीं रंजोगम कुछ हमें है,
दिन भी उम्र के ढले जा रहे हैं।

चाहेंगे हमको उसी रंग में पाना,
मुश्किल है अब हम गले जा रहे हैं।

कविता सिंह

पति - श्री योगेश सिंह माता - श्रीमति कलावती सिंह पिता - श्री शैलेन्द्र सिंह जन्मतिथि - 2 जुलाई शिक्षा - एम. ए. हिंदी एवं राजनीति विज्ञान, बी. एड. व्यवसाय - डायरेक्टर ( समीक्षा कोचिंग) अभिरूचि - शिक्षण, लेखन एव समाज सेवा संयोजन - बनारसिया mail id : [email protected]