परिश्रम
परिश्रम में होती है वह ताकत, जो राई से पहाड़ बना सकती है,
दो वक़्त की रोटी ही क्या, चांदी की थाली में भी खिला सकती है,
रोटी के लिए रोता है केवल वह, जिसकी नीयत में कर्म नहीं,
दूसरों के सामने हाथ फैलाते हैं वह, जिनमें स्वाभिमान ही नहीं,
आत्मसम्मान में है वह ताकत, जो परिश्रम की लौ जलाती है,
आंधी तूफानों में भी जलती रहती, वह बुझ कभी नहीं पाती है,
चमत्कार ऐसे दिखलाती है कि देख कर रूह तक कांप जाती है,
बिना हाथों के भी चित्रकला उनकी, अपनी खूबसूरती दिखाती है,
शिक्षा लो उन दिव्यांगों से, जिन्हें भगवान ने सब कुछ नहीं दिया,
परंतु हौसला और परिश्रम उनका, हर मुश्किल से जीत गया,
बिना परिश्रम दुनिया में इज्ज़त की रोटी कभी नहीं मिल पाती,
वरना फेंकी हुई रोटी तो कुत्ते को भी आसानी से मिल जाती है,
ख़ून पसीना बहा कर अपना, जो परिश्रम से हाथ मिलाता है,
सच पूछो तो उसके घर में, चूल्हा बिना जले ना रह पाता है,
परिश्रम सफलता की वह कुंजी है जो इज्ज़त से जीना सिखाती है
भले ही ना बन पायें अंबानी, मगर स्वाबलंबी सबको बनाती है।
-रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)