गीतिका
दर्द जो पिछले विदा लेते हैं।
हम नया दर्द बुला लेते हैं ।
रोज इक आग दिल में जलती है,
रोज हम अश्क बहा लेते हैं।
राह में स्याह अंधेरे जो मिले ,
हम अपने ख्वाब जला लेते हैं ।
दर्द जब हद से गुजर जाता है
दर्द के गीत बना लेते हैं ।
दर्द इंसानों पे शर्मिंदा है,
लोग इसको भी भुना लेते हैं।