ग़ज़ल
अपने चेहरे को आईना करके
ज़िंदगानी से जी वफ़ा करके
उम्र भर आँसुओं में डूबा हूँ
एक इंसान को ख़ुदा करके
आप आए नहीं जला दीपक
सर्द रातों से इल्तज़ा करके
कर सभी का भला ज़माने में
तू बुरा पाएगा बुरा करके
मुश्किलें और भी बढ़ाई हैं
ज़हर के पौधे को बड़ा करके
— बलजीत सिंह बेनाम