सरसी छन्द गीत : ये जीवन इक रंग मंच है
ये जीवन इक रंग मंच है, अलग- अलग किरदार ।
कठपुतली के खेल में हुए ,हम सब हिस्सेदार ।
कोई नराधम हुआ धरा पर ,चलता कुत्सित राह ।
ओर निभाये कोई मीत बन ,डाल प्रीत की बांह।
नानक सम है सतगुरु कोई ,तो कोई घन श्याम।
भूमिकाएं सब निभा रहे हैं ,क्या रहीम क्या राम ।
अजब-गजब प्रस्तुतियां देकर ,दिल छूते हर बार ।
कठपुतली के खेल में हुए ,हम सब हिस्सेदार ।
छिन्न -भिन्न मानवता को कर ,वहशीपन का राज ।
अस्मत बिछी बिसात सी यहां ,झपट रहे बन बाज ।
रिश्तों के भी कहीं दायरे ,खोने लगे हैं अर्थ ।
मृत्यु गिरा देती है पर्दा ,मानव जीवन व्यर्थ ।
हम सब अपने पाप- पुण्य के ,खुद ही जिम्मेदार ।
कठपुतली के खेल में हुए ,हम सब हिस्सेदार ।
सरस् रूप एक सृष्टि का है,बदले ऋतुएं साल ।
अम्बर ,सागर,धरा मीत हैं ,लहरों में करताल ।
हरित प्रकृति का रंग सलौना, खग की मुग्ध उड़ान ।
स्वर लहरी अधरों पर खेले ,बजती बंसी तान ।
इसी दृश्य को हृदय पटल ,सदा करो साकार ।
कठपुतली के खेल में हुए ,हम सब हिस्सेदार ।
रंग-मंच सी दुनियां मेरी ,गरल कभी रसदार ।
कभी बरसते मेघ अमिय के ,कभी मिले अंगार ।
पर खुद के गम मनुज भूलकर ,भरें हृदय में नूर ।
अभिनय करो सजीव जो लगे ,आशा से भरपूर ।
अमिट छाप दे जाना दिल पर ,याद करे संसार ।
कठपुतली के खेल में हुए ,हम सब हिस्सेदार ।।
— रीना गोयल