मुझको मत ठुकराना प्रिये
जीवन की मादक घड़ियों में,
मुझको मत ठुकराना प्रिये,
नव ऊषा लेकर आएगी,
जब मधुमय जीवन लाली,
कुहू- कुहू कर बोलेगी,
जब कोयलिया काली -काली।
नव रस से भर जाएगी,
जब बसन्त की डाली -डाली,
लहरेगी किसलय-किसलय,
पावन यौवन की हरियाली,
ऐसी मधुमय घड़ियों में,
तुम विरह गीत न गाना प्रिये।
छोटी -छोटी मन -रंजन,
और हरी -हरी द्रुम लतिकाएँ,
प्रातः मोती के चमकीले कण,
सलाज से भर लाएँ,
मादक यौवन में जब भौंरे
उन पर गुन-गुन कर खाएँ।
लहर -छहर कर प्रकृति विचरती,
हो जब कोमल रचनाएं,
तब ऐसी मधुमय में,
पल भर तुम मुस्काना प्रिये,
चूम धरा जब हंसती हो,
नटखट बदली सावन वाली।
नाचें मयूरी देख घटाएँ,
अम्बर में घिरती काली,
पी-पी के स्वर में चातक ,
जब दे उंडेल स्वर की प्याली,
ऐसी सुखदायी घड़ियों में पास तनिक तुम आना प्रिये।।
— कालिका प्रसाद सेमवाल