हैदराबाद में ओ३म् ध्वज की रक्षा के लिये एक आर्य दम्पति का बलिदान
ओ३म्
हैदराबाद एक मुस्लिम रियासत थी। रियासत के निजाम उस्मान अली थे। इनके समय में रियासत में हिन्दुओं से नाना प्रकार के अन्याय, अत्याचार व दुव्र्यव्यवहार किये जाते थे। हिन्दू भली भांति अपनी पौराणिक व आर्यसमाज की विधि से पूजा भी नहीं कर सकते थे। आर्य उपदेशकों को भी वहां जाकर प्रचार करने की स्वतन्त्रता नहीं थी। मन्दिरों की मरम्मत और मन्दिरों में लाउडस्पीकर लगाने का भी हिन्दुओं को अधिकार नहीं था। हिन्दुओं पर नित्य प्रति अत्याचार किये जाते थे। ऐसी स्थिति में आर्यसमाज की ओर से सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा, दिल्ली ने हिन्दुओं को धर्म पालन करने हेतु आवश्यक अधिकार दिलाने के सभी अहिंसक एवं शान्तिपूर्ण प्रयत्न किये। जब कोई लाभ नहीं हुआ तो आर्यसमाज के ओजस्वी एवं तेजस्वी विद्वान ऋषिभक्त नेता महात्मा नारायण स्वामी जी के नेतृत्व में सत्याग्रह की घोषणा की गई। देश भर से आर्यजन वहां जत्थे लेकर पहुंचे थे और निजाम से घुटने टिकवाये थे। गांधी जी ने इस पूरी घटना पर चुप्पी साधी रखी। इसका कारण यही था कि हिन्दुओं पर अत्याचार हो रहा था इस लिये गांधी जी का मुस्लिम प्रेम उनको हिन्दुओं पर अत्याचारों के प्रति कुछ कहने की अनुमति नहीं देता था। देश की आजादी के बाद हैदराबाद राज्य का भारत में विलय हुआ। देश के प्रथम गृहमंत्री और उपप्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने कहा था कि हैदराबाद रियासत का भारत में विलय इस लिये सम्भव हो सका कि आर्यसमाज ने हैदराबाद में सत्याग्रह कर आजादी की भूमिका तैयार की थी। हैदराबाद में हमारे अनेक आर्यवीर शहीद हुए। आर्यसमाज के इतिहास में हैदराबाद आर्य सत्याग्रह का गौरवपूर्ण स्थान है। जैसा सार्वदेशिक सभा का नेतृत्व तब था वैसा अब नहीं है। अब आन्दोलन तो क्या आर्यसमाज की विचारधारा के अनुरूप गोहत्या व हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिये प्रस्ताव तक पारित नहीं हो पाते। सीएए और एनआरसी का जैसा समर्थन किया जाना चाहिये था वैसा नहीं किया गया।
हम इस लेख में हैदराबाद के एक आर्य दम्पती श्री किशनराव जी एवं उनकी धर्मपत्नी माता गोदावरी बाई जी के बलिदान की कथा प्रस्तुत कर रहे हैं। यह विवरण हमने ‘हैदराबाद के आर्यों की साधना और संघर्ष’ पुस्तक से लिया है। यह पुस्तक आर्यसमाज के लौह पुरुष पंडित नरेन्द्र जी, हैदराबाद की लिखी हुई है। पंडित नरेन्द्र हैदराबाद आर्यसमाज के इतिहास पुरुषों में हैं। हैदराबाद आर्य सत्याग्रह में पं. नरेन्द्र जी की महत्वपूर्ण भूमिका थी। उन्होंने आर्यसमाज के लिये अनेक कष्ट सहे तथा कई बार उनका जीवन संकट में पड़ा है। कई बार विधर्मियों ने उन पर प्राण घातक हमले भी किये। उपर्युक्त पुस्तक का प्रकाशन मार्च, 1973 में मैसर्स गोविन्दराम हासानन्द, दिल्ली से हुआ था। पुस्तक में 192 पृष्ठ हैं। हमने यह पुस्तक जुलाई, 1990 में लगभग तीस वर्ष पूर्व पढ़ी थी। हम जो घटना प्रस्तुत कर रहे हैं उस प्रभावशाली घटना की स्मृति हमारे मस्तिष्क में अब तक बनी हुई है। ओ३म् ध्वज के लिये त्याग और बलिदान का ऐसा उदाहरण मिलना प्रायः असम्भव है। हमारा अनुमान है कि अब यह पुस्तक अप्राप्य श्रेणी में आ गई है। हम चाहेंगे कि इसका पुनर्मुद्रण हो जिससे नई युवा पीढ़ी इससे लाभ उठा सके। यह भी सत्य है कि आर्य साहित्य के युवा पाठक बहुत कम हैं। एक हजार की संख्या में छपने वाली कोई महत्वपूर्ण पुस्तक को खपने में भी वर्षों लग जाते हैं। यह अत्यन्त निराशाजनक स्थिति है। ऐसी स्थिति में मैसर्स विजयकुमार गोविन्दराम हासानन्द, दिल्ली, मैसर्स घूड़मल प्रह्लादकुमार आर्य धर्मार्थ न्यास, हिण्डोन सिटी तथा आर्य प्रकाशन, दिल्ली का प्रकाशन क्षेत्र में डटे रहना प्रशंसनीय है। अब हम पुस्तक से उस घटना को प्रस्तुत करते हैं जिसके लिये हमने भूमिका रूप में यह पंक्तियां लिखी हैं।
घटना इस प्रकार है ‘‘हैदराबाद में रजाकारी गतिविधियां जब शिखर पर थीं, उस समय की घटना है कि जिला उस्मानाबाद के कलक्टर मिस्टर हैदरी ने दो पठान और एक मुस्लिम पुलिस जवान को लेकर 6 मई सन् 1948 को श्री किशनराव टेके तहसल भूम स्थान ईंट के घर पर पहुंचकर किशनराव जी से कहा कि ‘‘तुम्हारे घर के आंगन में ‘‘ओ३म्” का झण्डा लहरा रहा है, उसे तुरन्त निकाल दो, अन्यथा तुम्हें गोली से उड़ा दिया जाएगा।”
श्री किशन राव जी ने ओजस्वी ध्वनि में बड़ी दृढ़ता के साथ कहा कि ‘‘मैं प्रत्येक रूप में मृत्यु का आलिंगन कर सकता हूं परन्तु ‘‘ओ३म्” के झण्डे को कदापि अपने घर से उतारूंगा नहीं।” ज्यों ही श्री किशनराव जी के मुख से ये शब्द निकले कि मिस्टर हैदरी ने पिस्तौल से गोली चलाकर श्री किशनराव जी को मृत्यु के घाट उतार दिया।
जैसे ही पिस्तौल की गोली के धमाके की ध्वनि श्री किशनराव जी की धर्मपत्नी श्रीमती गोदावरी जी के कानों में पड़ी, उन्होंने घर में लटकी हुई बन्दूक उठाई और विद्युत् की भांति घटनास्थल पर पहुंचीं। दो पठानों और एक पुलिस जवान को गोली का निशाना बनाकर उन्हें वहीं का वहीं ढेर कर दिया। दूसरे कक्ष में एक ओर हैदरी अत्याचारी खड़ा था। उसने वीरांगा श्रीमती गोदावरी बाई को पिस्तौल की गोली चलाकर समाप्त कर दिया और उनके सारे घर को आग लगा दी।
श्री किशनराव और उनकी धर्मपत्नी गोदावरी बाई जी ने अपने प्राणों की आहुति देकर भी आर्य-धर्म के पवित्र ‘‘ओ३म्” की पताका को झुकने न दिया। यह थी उन धर्मपरायण पति-पत्नी की अदम्य वीरता की कहानी।“
हम आशा करते हैं कि पाठक महानुभाव इस बलिदान की घटना को पढ़कर गर्व का अनुभव करेंगे। हम इन दोनों बलिदानियों को हृदय से नमन करते हैं। ईश्वर आर्य जाति को प्रेरणा करें जिससे यह अविद्या को छोड़कर देश व धर्म हित में प्रवृत्त हों और हमारी संस्कृति क्षय को प्राप्त न होकर विश्व में प्रचारित एवं स्वीकार्य हो सके। ओ३म् शम्।
–मनमोहन कुमार आर्य