कविता

सात का फेर ( मेरा नजरिया )

सात अंक का फेर है क्या ,
यह तो ईश्वर ही जाने
सात जन्म के साथी को
साथी पल में पहचाने
लेकर फेरे सात साथ
रहने की खाते कसमें
एक जन्म भी साथ न रहते
मन रखते ना वश में
ऐसे भी जातक हैं जग में
निष्ठा से जीते हैं
खुशी खुशी हर गम का प्याला
जीवन भर पीते हैं
कसमें वादे करते हैं
जाने कितने बहुतेरे
पर देखा है आफत में
अपनी अँखियों के फेरे
सात जन्म का बंधन ये
तो पल भर में ही तोड़े
निज खुशियों की खातिर
साथी को अधजल में छोड़े
सात जन्म की बात गलत है
अब लो इसको मान
प्रेम प्यार के दो पल ही
जीवन में काफी जान
अब सागर की बात करो
बोलो किसने देखा है
जग भर फैली जलराशि में
किसने खींची रेखा है
एक ही धरती , एक ही अम्बर
हम सबने बांटा है
सच कहता हूँ मानव ही
मानव का अब कांटा है
नभ में  कितने तारे हैं
कोई गिनती ना जाने
फिर क्यों हम कुछ तारों को
सप्तऋषि ही मानें
रंग तीन हैं सब पहचानें
बाकी सब बातें हैं
कवियों के सतरंगी सपने
सब मन को भाते हैं
सच क्या है यह सब ही जानें
पर किसको फुर्सत है
घंटी बाँधे बिल्ली को
किसकी इतनी जुर्रत है
सात अजूबे बीती बातें
आज बात हो दर्ज
नए नए नित खोज हैं होते
नए नए हैं मर्ज
बिजली , वाहन , रॉकेट , ईंधन
इनको क्या बोलोगे
दूर के दर्शन पास कराता
बक्सा जब खोलोगे
सात की गिनती पार हुई कब
ये कोई न जाने
कदम कदम पर अचरज है
अब सब इतना ही मानें
सात सुर हैं सच है ये
कोई इतना बतलाओ
साध सके जो सातों सुर को
इंसां एक सुझाओ
मानव मन की निर्मित हैं
जग में ये सारी बातें
ईश्वर ने सब एक बनाया
चाहे दिन हो या रातें
आओ हम सब प्रण कर लें अब
बोलें प्यार की बोली
मानव मानव मिलकर सोचें
बन जाएं सब हमजोली
एक धरा हो , एक गगन हो
धर्म एक हो न्यारा
इंसां बनकर हम सब जी लें
विश्व बनाएं प्यारा

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

One thought on “सात का फेर ( मेरा नजरिया )

  • मनमोहन कुमार आर्य

    आपकी कविता अति उत्तम है। उत्तम विचारो को कविता में पिरो कर आपने एक महनीय कार्य किया है। जो स्वप्न आप देख रहें हैं वही स्वप्न ऋषि दयानन्द जी ने भी देखा हैं। हम भी इसे साकार करना चाहते हैं। आपको सादर नमन एवं बंदन है। सादर।

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