कविता कहां तुम चले गए
हाथ छुड़ाकर तुम हो गए भीड़ में गुम
कैसे ढूंढे हम,कहां हो तुम
तुम्हें पुकारे हम
कहां तुम चले गए।
वह घर जो तेरा था,सुनसान पड़ा है अब
तेरे बिना विरान पड़ा है अब
तेरी यादें बसती हैं वहां
दीवारें रोती है वहां नाम तेरा ले लेकर
अब कैसे पुकारे हम
कहां तुम चले गए।
मन नहीं करता वहां जाने को
एक हूक सी उठती है
एक चीख निकलती है
पुष्पा कहकर अब किसे पुकारें हम
आई-जी सुनने को मेरी रूह तरसती है
कहां तुम चले गए।
आवाज किसे दें किसे पुकारे हम
जब तू नहीं दिखती,यह घर खाने को आता है
हर शै पर नाम तेरा,तेरी याद दिलाता है
दिल में है यह गम,भूल सकेंगे ना हम
कहां तुम चले गए।
जो जोड़ कर रखा था तूने
वह टूट गया परिवार
रिश्ते नाते टूट गए सब
किसी पर रहा ना कोई ऐतबार
कहां तुम चले गए।
बच्चों ने भी छोड़ दिया मुझको
जो प्यार का बंधन था तोड़ दिया उसको
अक्सर मैं रोता हूं साथ तेरे प्यार की यादें हैं
गए छोड़ अकेले तुम
कहां तुम चले गए।
तू ही मेरे प्यार की दुनिया थी
तेरा ही सहारा था
जाने से तेरे टूट गया हूं मैं
है कौन मेरा अपना,ना ही कोई प्यारा है
कैसे भूल पाएंगे हम
तेरा यह गम
कहां तुम चले गए।
जाने से पहले एक बार तो कहा होता
जो दर्द सहा तूने
उसे कर ना सके सका मैं कम
तेरे बिन किससे करें हम प्यार
किससे करें इकरार
गम तेरी जुदाई का सह सकेंगे कैसे हम
कहां तुम चले गए।
यादें तेरी हरदम मेरे साथ ही रहती हैं
अब किससे करें फरियाद,किसके लिए जाएं घर रहती है वहां तेरी याद
कहां तुम चले गए।
अंत समय पर तेरे पास खड़े थे हम
मगर कुछ कर ना सके थे हम
कुछ कह ना सके थे हम
आंखों में आंसू भर कर
किया आखिरी सलाम
कहां तुम चले गए।
— कृष्ण सिंगला