कितना बेबस है इंसान
देखो तुम्हारे संसार की हालत क्या होगाई भगवान
कितना लाचार है ये इंसान कितना बेबस है इंसान
कोरोना की महामारी से मानव जात की हुई तबाई
घरों में रहकर ही, इस महामारी से करनी है लड़ाई
मनुकुलवासी पर ये कैसा आया है ख़तरों का पहर
नजाने इस ‘वैरस’ का, आज हवाओं में भी है ज़हर
आया समय बड़ा विकराल इसका न कोई उपचार
घरों में रहेना ही बस एक मात्र करे हम सब विचार
नाच रहा कोरोना खुले में, घरों में छिप बैठो इंसान
नज़र न आये वैरस तो कैसे करना इसका नुक़सान
बंद है दरवाज़े, बंद है खिड़कियाँ, बैठे हार के सारे
संकट की इस घड़ी में हे नाथ जीवित है तेरे सहारे
जैसी करनी वैसी भरनी बात ‘राज’ लिखके रखनी
राम हो या, हो रहीम सबको भी ये बात है परखनी
✍️ राज मालपाणी,. ’राज’