मेरी प्रेरणा भी तुम, संवेदना भी तुम
मेरी प्रेरणा भी तुम,
संवेदना भी तुम ।
मेरा प्यार भी तुम हो,
मैं तुमसे प्यार करता हूँ।
प्यार का इकरार भी तुम हो ,
तुम्हीं हो मेरी ज़िंदगी।
ज़िंदगी का श्रृंगार भी तुम हो ,
तू ही मेरी प्रीत हैं ।
तू ही मेरा गीत हैं ,
गीत का संगीत भी तू हैं।
पहली बार जब तू मिली थी ,
मैं बहुत खुश था ।
सूनी मेरी वीरान ज़िंदगी को,
अपने प्यार से सजा दिया तूने।
मन का अँधेरा मिटा दिया तूने,
ज़मीं पे पड़ते नहीं थे पांव मेरे ।
ज़िंदगी मेरी सुन-सान थी,
रंग इस में भर दिए तूने।
फूल खुशियों के खिल उठे,
प्यार की खुशबू से महका दिया तूने।
मुझे खुशियों का खज़ाना मिल गया,
जीने का बहाना मिल गया।
तेरा सहारा मिल गया,
मेरी किश्ती को किनारा मिल गया।
आने से तेरे बहारें आ गई,
चारों तरफ ख़ुशी छा गई।
तुम्हें बहुत मैं प्यार करता हूँ,
इशारे पे तेरे मैं मरता हूँ।
मगर मेरे प्यार को किसी की नज़र लग गई,
मेरी सारी ख़ुशी छिन गई।
उस के प्यार ने करवट बदल ली,
जाने उस को क्या हो गया।
मौसम की तरह वो भी बदल गई,
प्यार मेरे से भी उस का कम हो गया।
रिश्तों पे हमारे बर्फ जम गई,
ज़िंदगी में मेरी अँधेरा छा गया।
अमन, चैन मेरा फ़ना हो गया,
गम में उस के मैं खो गया।
अध मरा हो गया,
खाना पीना मेरा हवा हो गया।
बहुत कोसता हूँ उस दिन को,
जब उस ने प्यार में पहल की थी।
पत्नी के जाने का दुःख कोई कम तो नहीं था,
और इस में इज़ाफ़ा हो गया।
प्यार का गम जब और बढ़ गया,
शिव बाबा! से मांगी दुआ मैंने।
मेरी मदद करो बाबा,
संभालो मुझे , बचा लो मुझे।
इस दलदल से निकालो मुझे,
दुआ मेरी कबूल हो गई।
बाबा! ने सुन ली मेरी,
मुझे कलम सौंप दी।
कविता गीत मैं लिखने लगा,
उस के प्यार ने मुझे कवि बना दिया।
मेरे गीत कविता छपने लगे,
पत्र – पत्रिकाओं में मेरा नाम हो गया।
उस के प्यार में जो मैंने,
कविता गीत लिखे हैं।
यह उस का प्यार ही था,
जो मेरे काम आ गया।
लाखों सलाम प्रणाम है उस के प्यार को,
जिसके प्यार से मेरी हर रचना उसके रंग में रंगी हैं।
“काव्य” जगत में मेरा नाम रोशन हो गया,
मेरी हर रचना मेरी प्रेरणा को समर्पित हैं।
मेरे साथ ऊँचा उसका भी नाम हो गया,
उस के प्यार ने क्या से क्या बना दिया मुझको।
जमीं से उठा कर अर्श पर पहुंचा दिया मुझको,
पत्र -पत्रिकों में ही नहीं ।
प्रेम कविताओं के लेखक के रूप में,
पुस्तकों में भी मेरा नाम आ गया ।”
— कृष्ण सिंगला