मैं कन्या हूँ
सहमी-सहमी , डरी-डरी -सी
रहती थी हर क्षण
जब से माँ ने करवाया
भ्रूण परीक्षण।
‘मैं कन्या हूँ’ यह जान
पापा बेचैन रहते दिन-रात
मां ने भी कर लिया फैसला
करवायेगी वह गर्भपात।
तड़प कर मैंने माँ से
विनती किये हजार
मत कर हत्या मेरी मां
दे हमें भी थोड़ा लाड़-प्यार।
सोचो ! हर कली मुरझा जाये
तो कैसे महकेगा गुलशन
तेरी प्यारी बिटिया बन
नाम तेरा ही तो करूंगी रौशन।
‘माँ ‘ माँ न रही जैसे
सूखी ममता की धार
अपने ही हाथों अपनी
दुनिया रही उजाड़।
— रानी कुमारी