त्रिभंगी छंद
घर से मत निकलो, सब जन प्रण लो, तालाबंदी सफल बने ।
थोड़ा गम खाओ, मत घबराओ, छँट जाएँगे मेह घने ।
अपने कर धोना, दूर करोना, निकट न आवे राय सही ।
बाहर मत जाना, कसम उठाना, ध्यान रहे जो बात कही ।।
फैली बीमारी, दुनिया सारी, रात-दिवस अब जूझ रही ।
जो नहीं दवाई, गहरी खाई, युक्ति न कोई सूझ रही ।
सामाजिक दूरी, है मजबूरी, जिसका पालन सभी करें ।
सुन बहना-भाई, साफ-सफाई, हमको रखना ध्यान धरें ।।
हे मानव ! ज्ञानी, मच्छरदानी, खाट लगाकर सो जाओ ।
या लूडो खेलो, रोटी बेलो, आज्ञाकारी हो जाओ ।
कुछ नया बनाओ, घर भर खाओ, तलो पकौड़े मूड बने ।
बाहर मत जाना, कहे सयाना, कहर करोना जाल तने ।।
अब मिर्च-समोसे, साँभर-डोसे, चाउमीन भी गायब हैं ।
जो लुप्त कचौड़ी, चाट-पकौड़ी, परेशान घर साहब हैं ।
वो पिज्जा-बर्गर, खाते मन भर, चित्र देख अब ललचाएँ ।
जाओ कोरोना, भर-भर दोना, पूर्ण करें खा इच्छाएँ ।।
— पीयूष कुमार द्विवेदी ‘पूतू’