मुस्कान की दास्तान
बहारों में खिल
रही उनकी मुस्कान
मानो एक चांद
इस जहां पर भी
आ गया है
उनका वो शर्माना
नज़र मिलने पर
नज़रों का झुक जाना
मिल के भी दूर चले
जाना
ये तो हमारी चाहत की ही
पहचान है
बहारों में खिली
मुस्कान की दास्तान है।।
— मनोज बाथरे