संभव विडम्बना भी
संभव विडम्बना भी
साथ है मेरे
उल्लास भी बहुत है
परिहास भी कम नहीं
मन हृदय की विवशता
हरदम निकट है मेरे
प्रयास करने पर भी
दूरियां घट नहीं रहीं
मगर एक आश है
मेरे मन में
कभी न कभी
ये विडम्बनाएं तो
दूर होगी ही मुझसे।।
— मनोज बाथरे