वैदिक संस्कृति के उज्जवल नक्षत्र हनुमान जी के कुछ गौरवपूर्ण कार्य
वैदिक वा पौराणिक मान्यता के अनुसार वीर हनुमान जी का जन्म त्रेतायुग के अंतिम चरण में और फलित ज्योतिष के आचार्यों की गणना के अनुसार 58 हजार 112 वर्ष पहले चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6.03 बजे भारत देश में आज के झारखंड राज्य के गुमला जिले के आंजन नाम के छोटे से पहाड़ी गाँव की एक गुफा में हुआ था। इस दृष्टि से आज उनकी जयन्ती है।
हनुमान जी भारतीय इतिहास ग्रन्थ एवं महाकाव्य बाल्मीकि रामायण में महत्वपूर्ण ऐतिहासिक पुरुषों में से एक हैं। बाल्मीकि रामायण के अनुसार वह माता सीता एवं मर्यादा पुरुषों श्री राम दोनों के अत्यधिक प्रिय थे। हमारे पौराणिक भाई मानते हैं कि इस धरा पर सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है। इन सात मनीषियों में एक बजरंगबली हनुमान भी हैं। यह मान्यता वैदिक मान्यताओं के विपरीत होने से स्वीकार नहीं की जा सकती। सभी जीवात्मायें अनादि, अजर व अमर हैं परन्तु वैदिक सिद्धान्त यह है कि जिसका जन्म होता है उसकी मृत्यु अवश्य होती है। गीता के श्लोक के शब्द हैं ‘जातस्य हि ध्रुवो मृत्यु ध्रुवं मृतस्य च’। यह गीता के श्लोकों से भी प्रमाणित है। कोई भी शरीरधारी मनुष्य व महापुरुष सशरीर अमर, मृत्यु रहित, नहीं हो सकता। हां, सभी महापुरुषों सहित मनुष्य व सभी प्राणियों की जीवात्मायें अमर हंै। किसी जीवात्मा का नाश वा अभाव कभी नहीं होता। यही उपदेश वेद व गीता आदि ग्रन्थों में ईश्वर व श्री कृष्ण जी के द्वारा पढ़ने व सुनने को मिलता है।
हनुमान जी के जीवन का महत्व उनके बलवान होने, बुद्धिमान होने, रामभक्त होने, सुग्रीव के आदेश से माता सीता की खोज में सफलता प्राप्त करने तथा पराक्रम की अनेक घटनाओं के कारण से है। उन्होंने सीता जी की खोज के लिये समुद्र को लांघा था। मनुष्य शरीर का समुद्र लांघना तो असम्भव है। अतः हम इसका यह अर्थ लेते हैं कि उन्होंने अवश्य ही किसी तीव्रगामी नौका अथवा किसी वायुयान का सहारा लिया होगा। इसकी अनुपस्थिति में वह समुद्र पार कर लंका में सीता जी के पास नहीं जा सकते थे। असम्भव बातों पर विश्वास करना हमें अविद्या प्रतीत होती है। अतः यही उचित प्रतीत होता है कि वह किसी सम्भव साधन से लंका पहुंचे होंगे, लांघ कर नहीं। हनुमान जी ने जिस तरह से राम चन्द्र जी के साथ सुग्रीव की मैत्री कराई वह भी उनकी मनीषा एवं मेधावी होने का प्रमाण है। वैदिक धर्म एवं संस्कृति के अनुयायी ईश्वरभक्त हनुमान जी वेदों के विद्वान थे। श्री रामचन्द्र जी की सीता की खोज एवं लंकेश रावण पर विजय में हनुमान जी के पुरुषार्थ एवं सहयोग का उल्लेखनीय योगदान है।
हनुमान जी को वज्रंगबली के रूप में जाना जाता है। इसका कारण इनके शरीर का वज्र के समान होना था। हनुमान जी क्षत्रिय थे और उन्होंने क्षत्रियों के यश व गौरव में वृद्धि की है। यदि राम व हनुमान का मिलन न हुआ होता तो रामायण को जो महत्ता प्राप्त है वह न होती। उस स्थिति में इतिहास कुछ और होता जिसके बारे में अनुमान नहीं किया जा सकता।
पौराणिक कथा है कि इन्द्र के वज्र से हनुमानजी की ठुड्डी (संस्कृत में हनु) टूट गई थी। इसलिये उनको हनुमान का नाम दिया गया। इस हनुमान नाम के अतिरिक्त भी वह अनेक नामों से प्रसिद्ध हैं जैसे बजरंग बली, मारुति, अंजनि सुत, पवनपुत्र, संकटमोचक, केसरीनन्दन, महावीर, कपीश आदि।
विश्व के मनुष्य रचित प्रथम महाकाव्य बाल्मीकि रामायण के अनुसार हनुमान जी को वानर के मुख जैसे अत्यंत बलिष्ठ पुरुष के रूप में दिखाया जाता है। इसका एक कारण उनका वनों में रहना तथा वशंगत कारण हो सकता है। इनका शरीर अत्यंत मांसल एवं बलशाली था। पौराणिक लोग भी हनुमान जी के कंधे पर यज्ञोपवीत लटका हुआ दिखाते हैं। यह प्रशंसनीय है। हनुमान जी को मात्र एक लंगोट पहने अनावृत शरीर के साथ दिखाया जाता है। वह मस्तक पर स्वर्ण मुकुट एवं शरीर पर स्वर्ण आभुषण पहने दिखाए जाते है। उनका मुख्य अस्त्र गदा माना जाता है।
सत्यप्रकाशन, मथुरा से ‘हनुमन-चरित’ नाम से एक पुस्तक का प्रकाशन हुआ है। आर्यसमाज के बन्धुओं को इस पुस्तक का अध्ययन करना चाहिये। इस पुस्तक को सत्यप्रकाशन, वृन्दावन रोड, मथुरा को पत्र लिखकर मंगाया जा सकता है।
आज हनुमान जी की जयन्ती के अवसर पर हम हनुमान जी को वेदों का विद्वान होने एवं उनके धर्ममय वीरता पूर्ण महनीय कार्यों का स्मरण कर उन्हें अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। वर्तमान पीढ़ी को हनुमान जी के चरित्र का अध्ययन कर उससे लाभ उठाना चाहिये। ओ३म् शम्।
–मनमोहन कुमार आर्य