हार और जीत
जिनके थे ,
बेजान इरादें ,
वो बाजी फिर हार गए ।
जिनके था ,
संकल्प जीत का,
वो जीते सब पार गए ।।१।।
कहां से आती जीत हाथ में
कहां से आती हार ।
खुद से आती जीत हाथ में
खुद से आती हार ।।२।।
जुनू नहीं था ,
जिनमें बिल्कुल ,
वो नखरे बेकार गए ।
जिनके था ,
संकल्प जीत का,
वो जीते सब पार गए ।।३।।
जिसने ठाना कर दिखलाया ,
उसने हर मंजिल को पाया ।
भाग्य कोसना श्अमनश् छोड़कर ,
दृढ़ संकल्पों को अपनाया ।।४।।
जिन सपनों में ,
जान भरी थी ,
वो सपने साकार गए ।
जिनके था ,
संकल्प जीत का,
वो जीते सब पार गए ।।५।।
— मुकेश बोहरा अमन