अपेक्षाएँ !!
एक स्त्री से…
प्रेम, वात्सल्य, स्नेह, करुणा..
मौन, मधुरता, सौंदर्य, सौम्यता..
त्याग, समर्पण, वफादारी, नम्रता..
संतुलन, दक्षता और सम्पूर्णता..
सब तरफ..
सुघड़ गृहिणी के रूप में
सफल माँ के रूप में
आदर्श पत्नी के रूप में
आज्ञाकारी पुत्री के रूप में
कामकाजी महिला के रूप में..
फिर भी घोषित कर दी जाती है अपूर्ण…
अपूर्ण के ही द्वारा..
ताकि पूर्णता का अहंकार ना उठे..
दबा दी जाती है कुछ आक्रोशित चीखें
ताकि अपूर्ण की महामन्यता बनी रहे..
देती है परीक्षा कभी सीता की तरह
स्वीकारती है चीरहरण की वास्तविकता
कभी पूज ली जाती देवी की तरह
कभी बना दी जाती पाषाण अहिल्या
कर्तव्यों की दहलीज पर खड़ा कर दिया जाकर
ले लिया जाता उस से अपेक्षा का अधिकार..
महिला दिवस पर मिले उस एक-दिवसीय सम्मान को
अपमानित होते हुए भी पूरे बरस देखती..
फिर भी पीती,
सहती सब कुछ..
चाहे उपेक्षित रहती अपनों की आँखों में..
फिर भी बढ़ती रहती जीवनपथ पर..
अपेक्षाओं और उपेक्षाओं की चादर ओढ़े..
उस अनंत चैतन्य सत्ता को पाने…
पूर्ण निर्विकार, निस्पृह होकर…
वही तो है स्त्री..
वही उसकी अपेक्षा..
वही उसकी पूर्णता !!
प्रेम, वात्सल्य, स्नेह, करुणा..
मौन, मधुरता, सौंदर्य, सौम्यता..
त्याग, समर्पण, वफादारी, नम्रता..
संतुलन, दक्षता और सम्पूर्णता..
सब तरफ..
सुघड़ गृहिणी के रूप में
सफल माँ के रूप में
आदर्श पत्नी के रूप में
आज्ञाकारी पुत्री के रूप में
कामकाजी महिला के रूप में..
फिर भी घोषित कर दी जाती है अपूर्ण…
अपूर्ण के ही द्वारा..
ताकि पूर्णता का अहंकार ना उठे..
दबा दी जाती है कुछ आक्रोशित चीखें
ताकि अपूर्ण की महामन्यता बनी रहे..
देती है परीक्षा कभी सीता की तरह
स्वीकारती है चीरहरण की वास्तविकता
कभी पूज ली जाती देवी की तरह
कभी बना दी जाती पाषाण अहिल्या
कर्तव्यों की दहलीज पर खड़ा कर दिया जाकर
ले लिया जाता उस से अपेक्षा का अधिकार..
महिला दिवस पर मिले उस एक-दिवसीय सम्मान को
अपमानित होते हुए भी पूरे बरस देखती..
फिर भी पीती,
सहती सब कुछ..
चाहे उपेक्षित रहती अपनों की आँखों में..
फिर भी बढ़ती रहती जीवनपथ पर..
अपेक्षाओं और उपेक्षाओं की चादर ओढ़े..
उस अनंत चैतन्य सत्ता को पाने…
पूर्ण निर्विकार, निस्पृह होकर…
वही तो है स्त्री..
वही उसकी अपेक्षा..
वही उसकी पूर्णता !!
— डॉ. वर्तिका जैन