कविता

मुझे जाना है

किस मुँह से कह रहे हो
रुक जा़ओ!
ठहर जाओ!
क्या समझुँ इसे?
चालाकी या सच में साेच में तुम्हारी
हृदय परिवर्तन
पर कैसे भूल जाउँ?
कल रात की भयावह संवाद
जिसमें अपनापन तो न था
जिसमें था डर
और सिर्फ डर
जिसके वास्ते अपने जन्म प्रदेश
छोड़ आया कर्म प्रदेश
बच्चपन बिता यहाँ
लगा दी जवानी मैंने मेरे पुरखो ने
शहर आबाद करने में
पर नहीं जानता था कि
विपदा में साथ न मिलेगा
आनाज गोदामों में सड़े और
हम मरे तो मरे तुम्हे क्या
हम तो सिर्फ आबादी है तुम्हारी नजरों मे
बर्बादी का कारण
हम भुखे रह लेगें
साहब!
पर मेरे छोटे-छोटे बच्चे की खातिर
मेरे बुढे जन्मदाता के खातिर
मेरे सफर के साथी के खातिर
मुझे जाना है
कर्तव्य हैं
मेरा कुछ भी कर अपनों को बचाना है
चूकना नहीं है कूच कर जाना है
हाँ कुछ जाने बचाने के लिए जाना है
मुझे जाना है

— कवि बिनोद कुमार रजक

बिनोद कुमार रजक

प्रभारी शिक्षक न्यु डुवार्स हिन्दी जुनियर हाई स्कुल पोस्ट-चामुर्ची, गाम- न्यु डुवार्स टी जी, जिला-जलपाईगुड़ी पिन- 735207 पश्चिम बंगाल ई-मेल[email protected] Mob no-6297790768, 9093164309