गीतिका/ग़ज़ल

सम्हल जाइये

वक्त बड़ा नाजुक है यार,सम्हल जाइये,
बेदाग दामन को बचाके,निकल जाइये!
कदम-कदम पर ठगी मिलेंगे दुनिया में
उनकी मोहक अदा पे ना फिसल जाइये!
जो खेला करते हैं किसी के जज्बातों से
उनके लिए यूँ मोम सा ना,पिघल जाइये!
ना जाने किस घड़ी बुझे जीवन का दीप
छोटी-छोटी बातों पर ही ना उबल जाइये!
सच्चाई का वजूद मिटता नही मिटाने से
इसलिए झूठ के प्यालो में ना ढल जाइये
दम घुटने लगा है गीत,ग़ज़लों का दोस्तों
यूँ चुटकुले सुन-सुनाकर ना बहल जाइये!!
— आशीष तिवारी निर्मल

*आशीष तिवारी निर्मल

व्यंग्यकार लालगाँव,रीवा,म.प्र. 9399394911 8602929616

One thought on “सम्हल जाइये

Comments are closed.