ख्वाब और ख्वाहिश
ख्वाबों ने जिंदा रखा,
ख्वाहिशों ने मारा है
जो टूट गया पलकों से
वो किस्मत का सितारा है
गैरों के ताल पे थिरकता
अदाओं पे बनता बिखरता
लुट गया गैरों की ख्वाहिश में
कैसे कहें कि तू हमारा है
नींदों की डोली में विदा हुई
मेरे कुंवारे सपनों की लाश है
अब तू मिल भी जाये तो क्या
जब तू दिल को नहीं गवारा है
नजरों में नहीं कोई अब नजारा है
नजरों से उतर गया है मेरे तू
या तूने ही अपनी बेवफा खुदगर्ज
बेगैरत नजरों से मुझे उतारा है
तेरी तड़प को भी जमाने में
ना अंजाम ए वफा हासिल हो
तू भी गुजरे उसी खार गली से
जिस खारगली से तूने हमें गुजारा है।
— आरती त्रिपाठी